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अच्यु॑ता चिद्वो॒ अज्म॒न्ना नान॑दति॒ पर्व॑तासो॒ वन॒स्पति॑: । भूमि॒र्यामे॑षु रेजते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

acyutā cid vo ajmann ā nānadati parvatāso vanaspatiḥ | bhūmir yāmeṣu rejate ||

पद पाठ

अच्यु॑ता । चि॒त् । वः॒ । अज्म॑न् । आ । नान॑दति । पर्व॑तासः । वन्चस्पतिः॑ । भूमिः॑ । यामे॑षु । रे॒ज॒ते॒ ॥ ८.२०.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:20» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:36» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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शिव शंकर शर्मा

सेना के गुणों को दिखाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सेनाजनों ! (वः) आपके (अज्मन्) गमन से (अच्युताचित्) सुदृढ और अपतनशील भी (पर्वतासः) पर्वत (वनस्पतिः) और वृक्षादिक भी (नानदति) अत्यन्त शब्द करने लगते हैं (यामेषु) आपके गमन से (भूमिः) पृथिवी भी (रेजते) काँपने लगती है ॥५॥
भावार्थभाषाः - इससे यह सूचित किया गया है कि यदि सेना उच्छृङ्खल हो जाय तो जगत् की बड़ी हानि होती है, अतः उसका शासक देश का परमहितैषी और स्वार्थविहीन हो ॥५॥
टिप्पणी: नोट−यह यहाँ स्मरण रखना चाहिये कि यह सूक्त बाह्य वायु का भी निरूपक है ॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वः, अज्मन्) आपके प्रस्थान करने पर (अच्युता, चित्) नहीं हिलने योग्य भी (पर्वताः) पर्वत (आ) चारों ओर से (नानदति) अत्यन्त शब्द करने लगते हैं तथा (वनस्पतिः) वनस्पतिएँ भी शब्दायमान हो जाती हैं (यामेषु) और यात्रा करने पर (भूमिः) पृथिवी (रेजते) काँपने लगती है ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में योद्धाओं के प्रस्थान करने पर जो पर्वतादिकों का शब्दायमान होना कथन किया है वह उपचार से है, या यों कहो कि क्षात्रधर्म का अनुष्ठान करनेवाले योद्धाओं का बल वर्णन किया है कि उनके प्रचण्ड वेग से भूमिस्थ लोक काँपने लगते हैं, जैसे कोई कहे कि भारत का आर्तनाद सुनकर सब लोग करुणारस में प्रवाहित होजाते हैं, इस कथन में “भारत” शब्द भारतवर्ष को नहीं किन्तु भारतदेशनिवासियों में लाक्षणिक होने से मनुष्यों का वाचक है, इसको शास्त्रीय परिभाषा में अलंकार, उपचार वा लक्षणा कहते हैं, लक्ष्यार्थ को समझकर जो वेदार्थ का ज्ञाता होता है, वही इस आशय को समझता है, अन्य नहीं ॥५॥
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शिव शंकर शर्मा

सेनागुणान् दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सेनाजनाः। वः=युष्माकम्। अज्मन्=अजमनि=गमने सति। अच्युताचित्=च्यावयितुमशक्या अपि। पर्वतासः=पर्वताः। पुनः। वनस्पतिः=वनस्पतयोऽपि। नानदति=आभृतो भृशं शब्दायन्ते। अपि च। युष्माकं यामेषु=गमनेषु। भूमिः। रेजते=कम्पते ॥५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वः, अज्मन्) युष्माकं गमने सति (अच्युता, चित्) अच्याव्या अपि (पर्वताः) गिरयः (आनानदति) आशब्दायन्ते (वनस्पतिः) वनस्पतयोऽपि नानदति (यामेषु) यानेषु (भूमिः) पृथिवी (रेजते) कम्पते ॥५॥